
अशोकानंद जी महाराज की दिव्य यात्रा: एक आत्मिक उत्कर्ष की ओर
अशोकानंद जी महाराज का जन्म 1978 में छत्रगढ़, जिला-रीवा, मध्यप्रदेश में हुआ था। वह एक जागीरदार परिवार से ताल्लुक रखते थे, जो मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमाओं में स्थित था। उनका परिवार तंत्र साधना में गहरी रुचि रखने वाला था, और यह रुचि समय के साथ उनके भीतर भी जागृत हो गई। अशोकानंद जी के पूर्वज और पिता तंत्र विद्या के मर्मज्ञ थे, जिनसे यह दिव्य प्रेरणा उन्हें मिली।
सिर्फ 14 वर्ष की आयु में उन्होंने साधना शुरू कर दी थी, और परिवार के सबसे बड़े बेटे होने के नाते, उन्होंने अपनी शिक्षा और साधना को संतुलित रूप से आगे बढ़ाया। स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी संभाली और आर्थिक रूप से खुद को सक्षम बनाने में सफलता प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय संस्था में भी काम करना शुरू किया, लेकिन जीवन का एक नया मोड़ तब आया जब, मात्र चौबीस साल की आयु में, उनकी आत्मिक यात्रा उन्हें भगवान “स्वामी शिवदत्त गोविंदानंद समयाचारी” के पास ले गई।
यह मिलन उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में साबित हुआ, और 2010 में उन्होंने साधना को अपने जीवन की प्राथमिकता बना लिया। इसके बाद, वे पूरी तरह से माँ नर्मदा के तट पर साधना और भजन में समर्पित हो गए। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने कई दिव्य स्थानों की यात्रा की, जैसे कि कनखल-उत्तराखण्ड, राजरप्पा-झारखंड, प्रयाग-उत्तर प्रदेश, विंध्याचल-उत्तर प्रदेश, सोनकुंड-छत्तीसगढ़, अष्टभुजा-मध्यप्रदेश और चोटिला-गुजरात। इन स्थानों पर की गई उनकी साधना ने उन्हें दिव्य अनुभवों से भर दिया और जीवन के उद्देश्य को एक नया दिशा दी।
अशोकानंद जी महाराज की साधना न केवल आत्मिक शांति की ओर बढ़ी, बल्कि उनके जीवन ने अपने उच्चतम उद्देश्य को प्राप्त किया। उन्होंने अपने मार्गदर्शन से न केवल अपने जीवन को, बल्कि दूसरों के जीवन को भी समृद्ध किया। उनकी जीवन यात्रा आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है।
अशोकानन्द जी की योजना: आश्रम निर्माण का उद्देश्य
प्रभु की सेवा और साधना का मार्ग एक अटल संकल्प और समर्पण की आवश्यकता है। आश्रम का निर्माण एक ऐसी पवित्र पहल है, जो भक्तों को शांति, ज्ञान, और साधना के माध्यम से आत्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करेगा। इस महान कार्य को आगे बढ़ाने के लिए, हम आपके सहयोग की प्रार्थना करते हैं।
आपका दान इस आश्रम के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देगा, जिससे यहां साधना, भजन, ध्यान और वेद पाठ का आयोजन किया जा सके। यह आश्रम न केवल साधना के लिए एक स्थायी स्थल बनेगा, बल्कि समाज के सभी वर्गों को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक लाभ भी प्रदान करेगा।
आश्रम निर्माण का मुख्य उद्देश्य:
१) लुप्त हो रहे प्राचीन तंत्र और आध्यात्मिक साहित्य के लिए व्यवस्था ग्रंथालय तैयार कर ग्रंथों और पांडुलिपियों का संरक्षण संवर्धन करना।
२)साधकों को साधना का उचित वातावरण और मार्गदर्शन प्रदान करना।
३)साधकों, परिक्रमा वासियों और आगंतुकों को आवास,भोजन आदि की समुचित व्यवस्था प्रदान करना।
आश्रम निर्माण हेतु दान का अनुरोध:
हम आपसे निवेदन करते हैं कि इस पुण्य कार्य में अपनी सामर्थानुसार दान देकर इस आश्रम की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान दें। आपकी मदद से हम इस दिव्य कार्य को जल्दी से जल्दी पूरा कर सकेंगे और समाज को एक नया दिशा दिखा सकेंगे।
सभी भक्तों से निवेदन है कि इस धार्मिक और आत्मिक यात्रा का हिस्सा बनें और पुण्य के भागीदार बनें।
दान के लिए कृपया राजर्षि अशोकानंद समयाचारी, नर्मदा तट, अमरकंटक, मध्य प्रदेश से संपर्क करें, ई-मेल: ssb.rewa@gmail.com
मंत्र चौतिसा: राजर्षि अशोकानंद समयचारी की एक पुस्तक
इस पुस्तक की हार्डकॉपी खरीदने के लिए कृपया समयोचित से संपर्क करें: 8335851035 या ई-मेल: samayuchit@gmail.com