6 वर्षीय लेखिका विनीशा शॉ की पुस्तक ‘माई बिग ड्रीम्स’ ने पाठकों का दिल छू लिया

कहावत है कि सपनों की कोई उम्र नहीं होती, और 6 वर्षीय विनीशा शॉ ने अपनी पहली पुस्तक ‘माई बिग ड्रीम्स’ के माध्यम से इसे सच कर दिखाया है। यह खूबसूरती से लिखी गई किताब एक मासूम कल्पनाओं की यात्रा है, जहां हर पन्ने पर बचपन की सादगी और दिल से निकली बातें झलकती हैं।

‘माई बिग ड्रीम्स’ में विनीशा ने बड़े होकर क्या बनना है, इस सवाल के उत्तर को अपनी मासूम कल्पनाओं और निस्वार्थ भावनाओं के साथ साझा किया है। किताब में वह कभी लोगों की मदद करना चाहती है, तो कभी जादुई आविष्कार करना, और कभी पूरी दुनिया में प्यार और खुशी फैलाने की इच्छा जाहिर करती है।

इस पुस्तक की खास बात यह है कि यह बच्चों के स्वप्निल विचारों को एक सशक्त आवाज़ देती है—एक ऐसी आवाज़ जो न केवल बच्चों को, बल्कि बड़ों को भी अपने भीतर के बच्चे से जुड़ने और फिर से सपने देखने की प्रेरणा देती है।

रंग-बिरंगे चित्रों, चंचल विचारों और उत्साह की संक्रामक भावना से भरी यह किताब केवल एक बाल-कहानी संग्रह नहीं है, बल्कि यह विश्वास, रचनात्मकता और दया के मूल्यों को उजागर करती एक प्रेरणात्मक कृति है।

‘माई बिग ड्रीम्स’ हर उस व्यक्ति के लिए एक संदेश है जो आज भी सपनों को सहेजना चाहता है – चाहे वह बच्चा हो या बड़ा। विनीशा शॉ ने अपनी पहली ही कृति से यह साबित कर दिया है कि नन्हे सपने भी बड़े असर छोड़ सकते हैं।

6 वर्षीय लेखिका विनीशा शॉ की पुस्तक ‘माई बिग ड्रीम्स’ ने पाठकों का दिल छू लिया

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