जहां एक ओर शहर भर में षष्ठी के मौके पर पंडालों और पूजा मंडपों में रौनक थी, वहीं कोलकाता की एक सड़क पर हुआ एक ऐसा आयोजन जिसने मानवीय संवेदना की मिसाल कायम की।
लायंस क्लब ऑफ कोलकाता मैग्नेट्स की सांस्कृतिक सलाहकार और प्रख्यात कवि-गीतकार झरना भट्टाचार्जी ने बुजुर्ग हाथ से चलने वाले रिक्शा चालकों के साथ सड़क पर षष्ठी का पर्व मनाया। यह आयोजन सिर्फ एक उत्सव नहीं था, बल्कि सम्मान और स्वीकार्यता का प्रतीक बन गया।
झरना के साथ इस विशेष अवसर पर संगीता दास, डॉ. शानोली रे, और प्रसिद्ध सामाजिक प्रभावक आशीष बसाक भी उपस्थित थे। इन सभी ने मिलकर बुजुर्ग रिक्शा चालकों को उपहार और आवश्यक सामग्री भेंट की।
झरना भट्टाचार्जी ने कहा,
“हाथ से चलने वाले ये रिक्शा चालक कोलकाता की जीवित विरासत हैं। ये सिर्फ श्रमिक नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति और इतिहास के प्रतीक हैं। इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सम्मान और सहयोग दिया जाना चाहिए।”
उन्होंने आम जनता से अपील की कि वे इन रिक्शाओं का उपयोग करें, चाहे वे हाथ से खींची जाती हों।
“यह उनके आत्म-सम्मान से जुड़ा हुआ है। यदि हम उनका इस्तेमाल करेंगे, तो वे अपनी मेहनत से उचित कमाई कर पाएंगे और सम्मानपूर्वक जीवन जी सकेंगे।”
इस छोटी लेकिन गहरी पहल ने यह सिद्ध कर दिया कि कोलकाता सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि भावनाओं और परंपरा की एक जीवंत किताब है—जिसे पढ़ने और सहेजने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है।
