
ज़मीन के करीब जड़ें जमाए, परीकथाएँ अभी भी जीवित हैं” — इसी भाव को साकार करता हुआ एक अनूठा और जीवंत सांस्कृतिक आयोजन ‘मंगल सुची’ 16 मई को पाइकपाड़ा स्थित मोहित मैत्रा मंच पर आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम न केवल बंगाली विरासत का उत्सव था, बल्कि बंगालियाना फैशन शो की 5वीं वर्षगांठ और ‘बंगाली की बारह महीने’ की यात्रा का भी स्मरण था।
इस आयोजन की परिकल्पना और निर्माण चंद्रिमा बसु और उनकी कंपनी आरआर हाउस ऑफ एंटरटेनमेंट द्वारा किया गया, जबकि योजना और कार्यान्वयन का जिम्मा मोशन सिने पिक्चर्स ने संभाला। निर्देशक व डिज़ाइनर की भूमिका निभाई सुशांत सरकार और मृण्मय सरकार ने, जिन्होंने चंद्रिमा बसु के साथ मिलकर 90 के दशक की यादों से प्रेरित एक संगीतमय परीकथा की रचना की।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था मंगल सुची के राजा और रानी की कहानी, जो एक सपने जैसी, दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति थी। विवाह के विभिन्न पारंपरिक रस्मों को जैसे शुभ दृष्टि, सतपाक, मालबदल, लक्ष्मी झांपी आदि को कविता, गीत, अभिनय और भावनाओं के माध्यम से जीवंत किया गया।
कलाकारों की सूची में शामिल थे:
अनिंद सरकार, देविका मुखर्जी, पलाश अधिकारी, नवागंतुक अद्रिजा रॉय चौधरी, सागर सिन्हा और स्वयं चंद्रिमा बसु।
मगर मंच की सबसे चमकदार सितारा रहीं छोटी राजकुमारी राइमा बसु, जिन्होंने अपनी मासूमियत से कार्यक्रम को जीवंत बना दिया।
फैशन और संगीत के मेल ने रचा जादू
चंद्रिमा बसु के आरआर फैशन हब द्वारा प्रस्तुत परिधानों की श्रृंखला में बंगाल की मिट्टी की खुशबू, साड़ी की लय, गमछे की गरिमा और जामदानी व नक्शीकंठा की कहानियाँ जीवंत हुईं। स्टाइलिस्ट नील साहा के निर्देशन में हर रैंप वॉक एक कथा बनकर उभरी।
संगीत निर्देशक शमिक कुंडू ने कार्यक्रम की भावनाओं को सुरों में ढाला, जिसे शमिक और शिउली समद्दार ने अपने स्वर से सजाया। कैमरे के पीछे प्रमित दास की नजर ने हर भाव को कैद किया।
जल्द आएगा डिजिटल रूप में
यह एक घंटे की संगीतमय फिल्म, जिसे ‘मंगल सुची’ के नाम से जाना जाएगा, आने वाले दिनों में सोशल मीडिया पर विभिन्न एपिसोड के रूप में रिलीज की जाएगी।
बंगालियाना: एक चलन नहीं, जीवनशैली
आरआर फैशन हब की संस्थापक चंद्रिमा बसु का कहना है कि “बंगालियाना सिर्फ परिधानों की बात नहीं, यह हमारी संस्कृति, भावनाओं और जड़ों की अभिव्यक्ति है।” फैशन यहां केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि चेतना है।
कार्यक्रम ने दर्शकों को एक बार फिर उस रूपोशी बंगाल की याद दिला दी, जिसे कभी कवियों ने अपने स्वप्नों में बसाया था।