कोलकाता की ऐतिहासिक पाथुरियाघाटा पांचर पल्लियों की दुर्गापूजा इस वर्ष अपने 86वें वर्ष में एक नए और सशक्त सांस्कृतिक संदेश के साथ सामने आई है। पूजा का आरंभ भावनात्मक उद्घोष “बंगला मेरी मां” के साथ हुआ, जो बंगाली अस्मिता और गौरव का प्रतीक बना।
पूजा समिति की अध्यक्ष और नगर निगम की पार्षद इलोरा साहा के नेतृत्व में इस बार दुर्गापूजा के माध्यम से बंगाली भाषा, परंपरा और संस्कृति के संरक्षण के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया गया है। समिति द्वारा एक आधिकारिक नोटिस जारी करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि पूजा पंडाल और उसके आस-पास केवल बांग्ला भाषा में संवाद किया जाए, और किसी भी प्रकार की उपेक्षा या अनादर को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही, पारंपरिक बंगाली पहनावे, व्यंजन और रीति-रिवाजों का सम्मान करने की अपील की गई है।
इस वर्ष आयोजन की विशेष बात यह रही कि पूरे पूजा कार्यक्रम की अगुवाई महिलाओं द्वारा की गई, जो नारी शक्ति को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उद्घाटन के मौके पर “बंगाली विरोध नहीं चलेगा” के ऐलान के साथ मेहमानों और स्थानीय लोगों को भुना हुआ चावल (मुड़ी) और बंगाली तले-भुने पारंपरिक स्नैक्स परोसे गए, जिससे उत्सव का रंग और भी गाढ़ा हो गया।
इस बार पूजा की थीम “यह शहर—वही समय” रखी गई है, जिसमें कोलकाता की सांस्कृतिक विरासत और भावनात्मक इतिहास को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
उद्घाटन समारोह में कई गणमान्य हस्तियाँ उपस्थित रहीं, जिनमें सांसद माला राय, सांस्कृतिक क्षेत्र से प्रियदर्शिनी घोष, स्मिता बॉक्सी, तीनकरी दत्त, विधायक अशोक देव और बोर्ड ऑफ चेयरपर्सन की सदस्य देबलीना विश्वास शामिल थीं।
पूजा समिति ने यह साफ़ कर दिया है कि बांग्ला भाषा और बंगाली संस्कृति का अनादर किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा। बंगाली पहचान को मजबूती देने वाली इस पहल को शहरवासियों से भरपूर समर्थन मिल रहा है, और यह दुर्गापूजा सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि संस्कृति, पहचान और सम्मान का उत्सव बन चुकी है।
